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Mercury Planet: A Planet Full Of Mysteries | बुध ग्रह – सौरमंडल का पहला रहस्यमई ग्रह

Mercury Planet हमारे सोलर सिस्टम का सबसे पहला ग्रह है। ये ग्रह हमारी पृथ्वी की ही तरह एक चट्टानी ग्रह है जिसकी सतह ठोस है, ये किसी भी चट्टानी ग्रह की भांति अलग अलग परतों से बना हुआ है। लेकिन इसकी कोर में क्या है या फिर इसकी परतें किस तरह काम करती हैं, इसकी जानकारी हमारे पास मौजूद नहीं है।

अकार की अगर बात करें तो हमारे सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह भी बुध ही है, पर सूर्य के सबसे नजदीक होने के बावजूद भी ये ग्रह हमारे सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह नहीं है।

बुध ग्रह की सतह सफ़ेद और चमकीली है क्योंकि इसकी उपरी सतह सिलिकेट की बनी हुई है, और अगर इसकी सतह को गौर से देखा जाए तो हमें पता चलेगा कि इसकी सतह पर क्षुद्र ग्रहों के टकराने के बहुत से निशान बने हुए हैं।

बुध ग्रह सूर्य के नजदीक होने की वजह से उससे इतनी रौशनी लेता है कि उसकी चमक हम यहाँ धरती से देख सकते हैं। पुराने जमाने में हमारे पूर्वज जब सुबह और शाम को आसमान में देखते थे तो बुध ग्रह भी उन्हें दिखाई दे जाता था , लेकिन उनको लगता था कि ये कोई तारा है।

हमारे पूर्वज कई वर्षों तक बुध ग्रह और शुक्र ग्रह में ही कंफ्यूज होते रहे थे, बुध ग्रह भी जितना चमकता है उसी तरह शुक्र ग्रह भी सुबह और शाम को चमकता है जिसकी वजह से शुक्र ग्रह को भी सुबह और शाम का तारा कहा जाने लगा था।

इसके आलावा बुध ग्रह से जुडी बहुत सी जानकारियाँ है जो आपको आगे इस लेख में पता चलेंगी।

Mercury Planet कैसे बना

ग्रह कैसे बनते हैं, इसपर अभी वैज्ञानिकों में विवाद बना हुआ है। अलग अलग तबके के वैज्ञानिक अपपनी अपनी थ्योरी सामने रख रहे हैं। लेकिन सिर्फ 2 ही थ्योरी हैं जिन्हें दुनियाभर में माना गया है

  1. The core accretion model
  2. The disk instability method

The core accretion model

पहले मॉडल में जब हमारा सूरज आस्तित्व में आ चुका था लेकिन उसके आसपास धुल का एक बहुत बड़ा गुबार था। ये धुल सूरज के बनने के बाद बची हुई थी जो सूर्य के गुरुत्व की वजह से इसके आसपास एक ख़ास ऑर्बिट में चक्कर लगाने लगी।

धीरे धीरे समय के साथ ये धुल एक डिस्क की तरह हो गई और सूर्य के गिर्द तेजी से घुमने लगी। सूरज भी उस समय बन रहा था और सूरज की गर्मी बढती जा रही थी।

गुरुत्व की वजह से धूल के कण आपस में चिपकने लगे, और वो कण बड़े होते गये। जैसे सूर्य में सोलर एक्टिविटी शुरू हुई, तो हलकी गैसें सौर हवाओं की वजह से पीछे खिसक गये।

The core accretion model ये कहता है की पहले किसी भी ग्रह की कोर बनकर तैयार होती है और वो पहले एक खास निश्चित द्रव्यमान (Critical Mass) तक पहुँचती है। फिर उसके बाद आगे की प्रक्रिया आरंभ होती है।

सूर्य के नजदीक सिर्फ भारी और बड़े बड़े टुकड़े ही बचे रह गये जो आगे चलकर ग्रहों में बदल गये। अब क्योंकि सूर्य के पास बहुत कम मटेरियल बचा था जिसकी वजह से जो सूर्य के नजदीक ग्रह बने वो छोटे थे जबकि सूर्य से दूर जो ग्रह बने वो अकार में चट्टानी ग्रहों की अपेक्षा काफी बड़े थे।

सूर्य के सबसे नजदीक बुध ग्रह बना, लेकिन इतना नजदीक होने की वजह से इस पर कोई वातावरण नहीं बन पाया और यही वजह से कि बुध ग्रह पर कोई वातावरण नहीं है। अगर होता भी तो वो सूर्य की वजह से टिक नहीं पाता।

लेकिन इस थ्योरी में दिक्कत ये है कि अगर ये ग्रह धीरे धीरे बने हैं तो छोटे ग्रहों को यनि जब वो बन रहे थे तब उनको सूर्य की ग्रेविटी में समा जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। सिमुलेशन से पता चला है कि ग्रहों को बनने में करोड़ों साल लग गये लेकिन जब ग्रह छोटे थे और अगर उन्होंने धीरे धीरे अपना भार बढाया तो क्या उनका ऑर्बिट बदला होगा। अगर ऐसा नही हुआ तो उन्हें सूर्य में समा जाना चाहिए था।

The disk instability method

The disk instability method पहले वाले मॉडल में आई खामी को दूर करता है। इसके अनुसार सूर्य और सौरमंडल के निर्माण के शुरूआती समय में ही धूल कण आपस में चिपक कर जुड़ने लग गये थे।

अब जब सूर्य बना तब तक ग्रह भी आधे बनकर तैयार हो चुके थे, यनि कि ग्रहों की कोर बनकर तैयार हो चुकी थी।

जब सूर्य पूर्ण रूप से बन कर तैयार हुआ तब तक ग्रहों के बनने की प्रक्रिया भी तेज़ हो गई और माना जाता है कि ग्रह की उपरी परतें कोर की अपेक्षा बहुत जल्दी बन गई थी। जिसकी वजह से ग्रहों ने अपनी ग्रेविटी से आसपास की गैसों को अपने अंदर कैद कर लिया था।

जब सूर्य में सौर एक्टिविटी शुरू हुई तो धुल और गैस सूर्य से दूर चली गई जिससे जल्दी ही बड़े प्लेनेट जैसे की सारे गैस के ग्रहों का निर्माण हो गया।

तो कुछ इस तरह से हम बुध ग्रह और बाकि के अन्य ग्रहों के निर्माण को अभी तक समझ पाए हैं।

बुध ग्रह (mercury planet)
mercury planet

भौतिक बनावट

हमारे सौरमंडल में बुध ग्रह सूर्य का सबसे नजदीकी ग्रह है, जोकि एक पथरीला और चट्टानी ग्रह है। सौरमंडल में मौजूद सभी ग्रहों में छोटा ये ग्रह अकार में सिर्फ 2439.7 किलोमीटर के व्यास तक ही सिमित है।

बुध ग्रह के अकार की तुलना अगर हम सौरमंडल के सबसे बड़े चांद से करें ,तो ब्रहस्पति ग्रह का सबसे बड़ा चांद Ganymede हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह है और इसका व्यास 5268 किलोमीटर है जोकि बुध ग्रह के व्यास के दो गुना से भी ज्यादा है।

बुध ग्रह पर मिले धातु के प्रमाण हमें बताते हैं कि बुध ग्रह 70% धातु से बना हुआ है और 30% सिलिकेट पदार्थ से निर्मित है।

बुध ग्रह का अध्ययन करने के लिए हम इसको कई तरह से देख सकते हैं। जैसे कि अगर हम बुध ग्रह के गर्भ में चल रही प्रक्रियाओं को जानना चाहते हैं या फिर इसकी बनावट को समझना चाहते हैं तो हमें इसकी आन्तरिक संरचना को समझना होगा।

बुध ग्रह पर दिन और रात का अध्ययन करने के लिए इसके अपनी एक्सिस पर घूर्णन को जानना होगा। इसपर बनने वाले मौसम और वातावरण को हम इसके ऑर्बिट से जान पायेंगे।

तो सबसे पहले बुध ग्रह की आन्तरिक संरचना से शुरुआत करते हैं।

आंतरिक संरचना (Internal Structure)

बुध ग्रह की अंदरूनी संरचना में हम इस ग्रह की सतह के निचे पाई जाने वाली परतों की बात करेंगे। जांच पड़ताल के बाद वैज्ञानिक मानते हैं कि बुध ग्रह मुख्य रूप से 5 परतों से बना हुआ है। जोकि निम्नलिखित हैं।

  1. सबसे ऊपरी सतह जो सिलिकेट से बनी हुई है। सबसे उपरी सतह को हम Crust कहते हैं।
  2. Crust से नीचे गहराई तक चट्टानी मेंटल पाई जाती है। ये परत ग्रह को बेहतर आकार प्रदान करती है।
  3. मेंटल के नीचे पाई जाने वाली परत, एक बहुत ही पतली Crust की तरह है जो इस ग्रह की मेंटल परत को तरल कोर से अलग करती है।
  4. इसके बाद आती है तरल ऊपरी कोर, जिसमें हर वक़्त गर्म लावा बहता रहता है। इसी गर्म लावा की वजह से किसी भी ग्रह को उसका Magnetosphere मिलता है।
  5. अंत में बुध ग्रह के केंद्र में एक ठोस, चट्टानी अंदरूनी कोर पाई जाती है।

किसी भी ग्रह के अंदरूनी भाग का अध्ययन करके हम ये पता कर सकते हैं, कि उस ग्रह का निर्माण किस प्रकार हुआ है। ग्रह कैसे सूर्य और अन्य चीजों से प्रभावित होता है।

सौरमंडल में पृथ्वी के बाद बुध ग्रह दूसरा सबसे ज्यादा घनत्व वाला ग्रह है। जहाँ पृथ्वी का घनत्व 5.515 g/cm3 है तो वहीं बुध ग्रह का घनत्व 5.527 g/cm3 पाया गया है।

बुध ग्रह हमारी पृथ्वी से आकार में बहुत छोटा है और कम भारी है, तो अगर हम दोनों ग्रहों पर उनके आकार और भार से होने वाले कम्प्रेशन को नकार दें तो हमें ये पता चलता है की असल में बुध ग्रह पृथ्वी से कहीं ज्यादा घनत्व वाले पदार्थों से मिलकर बना है।

बुध ग्रह की कोर की बात करें, तो इसकी कोर ग्रह के अंदरूनी भाग के 50% के बराबर है जबकि हमारी पृथ्वी की कोर अपने अंदरूनी भाग का कुल 17% ही है। जिससे ये पता चलता है कि बुध ग्रह के पास एक बहुत ही बड़ी कोर है।

जब ये ग्रह बना होगा तो इसके ऊपर ज्यादा पदार्थ नहीं आ पाया, या हम ये मान सकते हैं कि सूर्य के ज्यादा नजदीक होने की वजह से बुध ग्रह और ज्यादा बेहतर तरीके से नहीं बन पाया।

बुध ग्रह की कोर में सौरमंडल के किसी भी ग्रह पर पाए जाने वाले लोह खनिज से कहीं ज्यादा लोहा मौजूद है। इसलिए कहा जाता है कि बुध ग्रह की कोर अत्त्याधिक धातु की बनी हुई है।

इसकी कोर की तुलना अगर आप इस पूरे ग्रह के अकार से करेंगे तो आपको इसकी कोर की विशालता का अंदाजा हो जाएगा। इस ग्रह का एवरेज रेडियस 2439.7 ±1.0 km है लेकिन इसकी कोर का रेडियस 2020 ± 30 km के आसपास है। यानि जो इसकी बाकी परतें हैं वो केवल 400 km के लगभग ही है।

बुध ग्रह का Magnetic Field

पृथ्वी के मुकाबले अगर देखा जाए तो बुध ग्रह का मैग्नेटिक फील्ड बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है। Meriner 10 से मिले डाटा के मुताबिक बुध ग्रह का magnetic field हमारी पृथ्वी के मुकाबले में सिर्फ 1.1% ही है, जोकि बहुत कम है।

इसके अलावा बुध ग्रह का मैग्नेटिक फील्ड इसकी Spin axis के साथ Aligned रहता है। जबकि पृथ्वी पर इन दोनों axis में करीब 11° का फर्क है।

वैसे तो बुध ग्रह का मैग्नेटिक फील्ड पृथ्वी की अपेक्षा बहुत कमजोर है लेकिन ये सूर्य से आने वाली सौर हवाओं को रोक देता है, जिससे बुध ग्रह के इर्द गिर्द एक आवरण बन जाता है जिसे हम Magnetosphere कहते हैं। बुध पर पाए जाने वाले इस चुम्बकीय आवरण की वजह से बुध ग्रह पर कुछ हद तक मौसम देखने को मिल जाते हैं।

जहाँ तक बात है बुध ग्रह पर मैग्नेटिक फील्ड के बनने की तो हम ये जानते हैं की बुध ग्रह की सबसे अंदरूनी कोर ठोस धातु की बनी हुई है और उसके बाद एक तरल बहते हुए, या पिघले धातु की परत है। ये दोनों परतें जब घुमती हैं तो एक डाइनेमो इफ़ेक्ट पैदा होता है जिससे मैग्नेटिक फील्ड पैदा होता है।

ठीक इसी वजह से हमारी धरती पर भी magnetosphere का निर्माण होता है। लेकिन पृथ्वी का magnetosphere बुध ग्रह के मुकाबले बहुत बड़ा, और ज्यादा एक्टिव है।

बुध ग्रह पर क्रेटर

Late Heavy Bombardment के अनुसार, आज से करीब 4.1 से 3.8 अरब साल पहले हमारे अंदरूनी सौरमंडल में एक भारी उथल पुथल हुई थी। बाहरी सौरमंडल से बहुत ज्यादा मात्रा में एस्टेरोइड और कॉमेट अंदरूनी सौरमंडल में घुस आये और लगभग हर ग्रह से जा टकराए।

बुध ग्रह पर दिखाई देने वाले ज्यादातर क्रेटर Late Heavy Bombardment समय के ही है। बुध ग्रह पर कोई वायुमंडल न होने की वजह से एस्टेरोइड और कॉमेट का टकराव बहुत जोरदार रहता था और उसी वजह से जो क्रेटर बनता था वो बहुत बड़ा होता।

बुध ग्रह की लगभग पूरी सतह पर क्रेटर देखने को मिल जाते हैं, लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि Late Heavy Bombardment के समय बुध ग्रह आंतरिक रूप से एक्टिव था और बुध ग्रह पर बहुत से ज्वालामुखी पाए जाते थे जिसकी वजह से बहुत से क्रेटर ज्वालामुखी के लावा (मैग्मा) की वजह से ढक चुके हैं।

बुध ग्रह के सबसे बड़े क्रेटर की बात की जाए तो कैलोरिस बेसिन (Caloris Basin) या फिर Caloris Planitia इस ग्रह पर मौजूद सबसे बड़ा क्रेटर है, जिसका व्यास करीब 1550 किलोमीटर से ज्यादा है।

Caloris Planitia क्रेटर जिस टकराव की वजह से बना था, वो इतना जोरदार था कि उसकी वजह से बुध ग्रह से लावा तक बहार आ गया और उस लावा ने क्रेटर के आसपास करीब 2 किलोमीटर ऊँची पहाड़ की दीवार बना दी।

इसी प्रकार बुध ग्रह पर हर जगह हमें उबड़ खाबड़ सतह देखने को मिल जाती है। सतह पर बहुत से पहाड़ी इलाके हैं जहाँ इस ग्रह की सतह बिलकुल हमारे चांद की सतह जैसी प्रतीत होती है।

लेकिन बुध ग्रह सिर्फ अपने क्रेटर की वजह से ही नहीं बल्कि अपनी सतह के और भी कई features के लिए जाना जाता है, जैसे कि बुध ग्रह के समतल इलाके यानि Plane Areas.

बुध ग्रह के समतल इलाके

आपको ये पढ़कर हैरानी हो सकती है कि बुध ग्रह जोकि क्रेटर से पूरी तरह से भरा पीडीए है वहां पर बहुत से समतल इलाके भी पाए जाते हैं।

वैज्ञानिक मानते हैं कि बुध ग्रह पर अरबों साल पहले ज्वालामुखी हुआ करते थे और बुध ग्रह एक बहुत एक्टिव ग्रह हुआ करता था। जब Late Heavy Bombardment की घटना हुई टी ज्वालामुखी की वजह से बहुत से क्रेटर लावा के बहाव की वजह से समतल हो गये और उन जगहों पर एक समतल सतह का निर्माण हो गया।

बुध ग्रह पर हुई ये प्रक्रिया हमें चांद पर बने समतल इलाकों की याद दिलाती है क्योंकि चांद पर भी समतल इलाके बिलकुल इसी तरह से ही बने थे।

हालांकि बुध ग्रह पर समतल इलाके बहुत बड़े अकार में नहीं फैले हुए हैं, ये बाद क्रेटर के बीच की जगह और 2 क्रेटर के बिच की जगह में मौजूद है।

बुध ग्रह के रहस्य

भले ही हम बुध ग्रह के बारे में बहुत कुछ जान गये हैं लेकिन आज भी वैज्ञानिक बुध ग्रह के बहुत से पहलुओं से अपरिचित हैं। बुध ग्रह के ऐसे बहुत से रहस्य हैं जिन पर वैज्ञानिक एकमत नहीं हो पाए हैं और जिनके उत्तर फिलहाल हमारे पास नहीं हैं।

बुध ग्रह कहाँ पर बना?

बुध ग्रह बहुत नजदीक से सूर्य के चक्कर लगाता है, बुध ग्रह की सूर्य से दूरी हमारी पृथ्वी के मुकाबले सिर्फ एक तिहाई ही है और ये महज 88 दिनों में सूर्य का एक ऑर्बिट पूरा कर लेता है।

वैज्ञानिक मानते हैं कि बुध ग्रह सूर्य के इतना पास नहीं बन सकता या हम ये कह सकते हैं कि बुध ग्रह हमेशा से इस जगह पर नहीं था।

अपनी इस थ्योरी के पक्ष में वैज्ञानिक नासा के MESSENGER Spacecraft से मिले डाटा को सामने रखते हैं। डाटा में पता चला की बुध ग्रह की सतह में Potassium की अत्यधिक मात्रा मिली है जोकि बहुत ज्वलनशील होता है और वहीं दूसरी ओर ज्यादा स्टेबल एलिमेंट Thorium मिला है जोकि काफी कम मात्रा में मौजूद है।

Potassium एलिमेंट बहुत गर्म तापमान में जल्दी वाष्पित हो जाता है पर वहीं अगर Thorium Element को देखा जाए तो Thorium अत्त्याधिक तापमानों पर भी अपने आप को मेन्टेन रख पाता है।

जब हम इन दोनों एलिमेंट को सौरमंडल के बाकि ग्रहों पर देखते हैं तो हमें परिणाम बिलकुल विपरीत देखने को मिलते हैं। शुक्र ग्रह, पृथ्वी और मंगल ग्रह पर इन एलेमेंट्स की मात्रा की रेश्यो उसी अनुपात में है जिस अनुपात में इन ग्रहों का तापमान है।

रहस्य ये है कि बुध ग्रह पर Potassium को जहाँ Vaporise हो जाना चाहिए, क्योंकि बुध ग्रह पर तापमान बहुत ज्यादा है। वहां पर बहुत अधिक मात्रा में Potassium का मिलना संदेह पैदा करता है, की क्या वाकई में बुध ग्रह सूर्य के नजदीक ही बना था या फिर ये बाद में सूर्य के नजदीक पहुंचा है।

क्या बुध ग्रह पर पानी है?

हम बुध ग्रह को हमारे सौरमंडल के सबसे गर्म ग्रहों में गिनते हैं, जहाँ का तापमान 450°C तक रहता है। ऐसे में बुध ग्रह पर बर्फ मिलना तो बहुत दूर की बात है पानी मिलना भी हमें नामुमकिन सा लगता है।

लेकिन MESSENGER Spacecraft नें हमें बुध ग्रह पर पानी के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया। जब ये स्पसक्रेफ्ट बुध ग्रह के चक्कर लगा रहा था, तब इस ग्रह के ध्रुवीय इलाकों में लाइट रिफ्लेक्ट होती हुई दिखी।

इस बात से अंदाजा ये लगाया गया कि क्रेटर में भारी मात्र में पानी जमा हो सकता है जिसकी वजह से लाइट रिफ्लेक्ट हुई होगी। पर हमें इस डाटा पर सत्य की मोहर लगाने के लिए और सबूत चाहिए होंगे जैसे कि बुध ग्रह पर आखिर कितना पानी है। अगर वो सच में पानी है तो वो आया कहाँ से।

क्या ये पानी बुध ग्रह पर बिलकुल शुरुआत से ही मौजूद था या फिर ये बाद में इस ग्रह पर लाया गया, बिलकुल पृथ्वी के पानी की तरह। फिलहाल बुध ग्रह पर पानी की इस थ्योरी पर कोई भी एकमत नहीं है।

क्या बुध ग्रह एक जीवित ग्रह है?

बुध ग्रह पर हमें अनेकों प्रकार की भूगोलीय संरचनाएं देखने को मिल जाती हैं, जैसे कि क्रेटर, पहाड़, दर्रे, घाटियाँ आदि। इन सभी संरचनाओं का निर्माण किसी भी ग्रह के अंदरूनी हिस्से में चल रही क्रियाओं से होता है।

अगर कोई ग्रह अपने अंदरूनी भाग में सक्रिय है और उसी सक्रियता की वजह से अगर भूकंप आ रहे हैं, अगर ज्वालामुखी फट रहे हैं, टेक्टोनिक प्लेट के सरकने से पहाड़ और घाटियाँ बन रही हैं तो वो ग्रह जीवित माना जाता है।

बुध ग्रह पर ज्वालामुखी का होना इस ग्रह के जीवित होने की ओर एक संकेत है और समतल सतह का होना भी बुध ग्रह को जीवित ग्रह के श्रेणी में रखता है।

लेकिन अभी के समय में बुध ग्रह पर ऐसी कोई भी गतिविधि देखने को नही मिलती जिससे हम किसी एक निष्कर्ष पर पहुँच पायें कि बुध ग्रह अभी भी जीवित है या नहीं।

बुध ग्रह पर एक बहुत ही बड़ा क्रेटर बना हुआ है जो देखने में बहुत ही रहस्यमई लगता है। ये क्रेटर बुध ग्रह की सतह पर कुछ इस तरह से बना है कि ये किसी मकड़ी की तरह दिखाई देता है।

क्रेटर मकड़ी के मुख्य भाग और इस क्रेटर के आसपास बहुत सी दरारें बनी हुई हैं जो मकड़ी के पैरों की तरह लगती हैं। लेकिन वैज्ञानिक इस बात को लेकर हैरान हैं की इस तरह की कोई भी संरचना सौरमंडल में कहीं भी दुसरे ग्रह पर देखने को नहीं मिली है।

क्या बुध ग्रह के पास रिंग्स हैं?

नहीं, बुध ग्रह के पास कोई भी रिंग सिस्टम नहीं है।

बुध ग्रह को Swift Planet क्यों कहा जाता है?

बुध ग्रह सूर्य के गिर्द बहुत तेज़ गति से चक्कर लगाता है, इसकी गति 47 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है। इसीलिए बुध ग्रह को Swift Planet कहा जाता है।

बुध ग्रह कितना गर्म है?

बुध ग्रह की सतह का जो हिस्सा सूर्य की तरफ रहता है, वहां का तापमान 427° सेल्सिअस तक पहुँच जाता है।

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