Planets

प्लूटो दोबारा ग्रह बन सकता है क्या? Why Pluto is not a Planet Anymore?

Why Pluto is not a Planet: 24 अगस्त 2006 को एस्ट्रोनॉमी का सबसे बड़ा Controvercial Decision लिया गया। उस दिन के बाद से हमारे सौरमंडल में बहुत कुछ बदल गया। International Astronomical Union नें इस दिन ग्रहों की परिभाषा को पूरी दुनियां के सामने रखा और जिस वजह से हमारे सौरमंडल का उस समय का सबसे आखिरी ग्रह प्लूटो ग्रहों की सूची से बहार निकल गया।

लोग और कुछ वैज्ञानिक IAU के इस फैसले से बिलकुल भी खुश नहीं थे, कुछ लोग तो इस फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतर आये थे क्योंकि वो प्लूटो को ग्रहों की सूची से हटते हुए नहीं देखना चाहते थे।

प्लूटो और ग्रहों में उलझन

आज भी कई बार ये अफवाह सुनने को मिल जाती है कि प्लूटो को दुबारा ग्रहों की सूची में शामिल किया जा सकता है। पर ये सारी बातें असलियत से बहुत परे हैं। हमें यहाँ पर भावनाओं की जगह वैज्ञानिक तर्क से सोचना होगा की जो IAU का फैसला था, क्या वो सही था?

इस आर्टिकल में प्लूटो के बारे में हम बात करेंगे कि क्यों प्लूटो को ग्रहों की सूची से बहार निकाला गया और क्या ये कदम सही था? प्लूटो को बहार निकाल कर कौन सी समस्याएं हल हो गई।

हमारे पास सवाल कई हैं कि क्या प्लूटो को बहार करना जरूरी था? और इससे हमारी सोच और सौरमंडल की समझ पर क्या फर्क पड़ा है।

तो वो कौन सी समस्या थी जिस वजह से प्लूटो को बहार किया गया, सबसे पहले तो हमें उस समस्या को खोजना होगा। उसके बाद solution के तौर पर क्या क्या विचार पेश किये गये उन पर भी हम चर्चा करेंगे।

ग्रहों की खोज और इतिहास

सबसे पहले तो हम ये जानते हैं कि जब टेलिस्कोप नहीं खोजा गया था तब मानव जाति सिर्फ शनि ग्रह तक ही जानती थी, क्योंकि यही वो ग्रह थे जो सामान्य आखों से रात के आसमान में देखे जा सकते थे।

जब गैलीलियो नें टेलिस्कोप से आसमान की और देखा तो उन्होंने ब्रहस्पति ग्रह के इर्द गिर्द घूम रहे कुछ उपग्रहों को भी देखा। वो उपग्रह भी किसी सामान्य ग्रह की ही तरह अकार में गोल थे।

उस समय ग्रह की कोई परिमाणित परिभाषा नहीं थी, उस समय लोग हर उस खगोलीय वास्तु को ग्रह मान सकते थे जो सूर्य का चक्कर लगा रही थी और वो दिखने में गोल आकार की हो, जैसे हमारे ग्रह अक्सर दिखाई देते हैं। इस शुरूआती परिभाषा से तो हर एक गोलाकार उपग्रह को भी किसी ग्रह की श्रेणी में रखा जा सकता था।

धीरे धीरे हमने नये ग्रह खोजने शुरू कर दिए, एस्टेरोइड बेल्ट में CERES एक ऐसा पिंड था जो पूरी तरह से गोल है। ये किसी ग्रह को ही तरह सूर्य को ऑर्बिट कर रहा है लेकिन ये एस्टेरोइड बेल्ट में मौजूद है और छोटे छोटे क्षुद्र ग्रहों से घिरा हुआ है।

इसके बाद अरुण और वरुण ग्रहों के अलावा भी प्लूटो और इसके बाद भी कई ग्रहों को खोजा जाने लगा, जो अकार में गोल थे। उनका अकार भले ही छोटा था लेकिन वो सूर्य का चक्कर लगा रहे हैं।

वैज्ञानिक इस सोच में थे कि जैसे जैसे हम विकास करेंगे। हमारी टेक्नोलॉजी का विकास होगा, वैसे हम और भी खगोलीय पिंडों की खोज करते जायेंगे, और अगर हम सबको ही ग्रह का दर्जा देने लग गये तो जो असल में एक ग्रह है और दूसरा जो ग्रह की भाँती हमने दूर कहीं खोजा है, उनमें क्या ही फर्क रह जाएगा।

और ग्रह की ये Classification बहुत आधारहीन थी, जिसमें कोई लिमिट नहीं थी कि आखिर किस को एक ग्रह माना जाए और किसे एक ग्रह मानने से इनकार कर दिया जाए।

अगर हम एक ग्रह को डिफाइन नहीं करेंगे तो हमें सब चीजों को एक ग्रह की श्रेणी में ही रखना होगा और ये बहुत ही Confusion भरा हो जाएगा।

तो यहाँ से हमें जरूरत महसूस हुई कि हम ग्रह की एक अलग परिभाषा को सबके सामने रखें, जो एक ग्रह और दूसरी खगोलीय वस्तु में साफ़ साफ़ अंतर बता दे।

इस पूरी कहानी से हमें पता चलता है कि ये सारी समस्या कभी न तो प्लूटो से शुरू हुई थी, न प्लूटो कभी इस समस्या का केंद्र रहा था और न ही प्लूटो को लेकर कोई निजी तौर पर हमलावर था।

ये सारी समस्या हमारे सौरमंडल में नयी खोजी जा रही वस्तुओं की बढती गिनती से पैदा हो रही भ्रम की स्थिति से उत्पन हो रही थी।

तो इस समस्या से निकलने के लिए हमें ये परिभाषित करना जरूरी था कि आखिर एक ग्रह होता क्या है।

प्लूटो (Pluto Planet)
Pluto Planet

ग्रह क्या होता है

अंग्रेजी के PLANET शब्द को हम हिंदी में ग्रह का नाम देते हैं, लेकिन PLANET शब्द को ग्रीक भाषा के एक शब्द “Planetes” से लिया गया है, जिसका मतलब होता है भटकता हुआ तारा. शुरूआती मानव सभ्यता को सिर्फ 5 ग्रहों का ही ज्ञान था बुध ग्रह, शुक्र ग्रह, पृथ्वी, मंगल ग्रह, ब्रहस्पति ग्रह और शनि ग्रह। इन पाँचों ग्रहों को प्राचीन ग्रह भी कहा जाता है।

इन ग्रहों को प्लैनेट्स (भटकते हुए तारे) इसलिए कहा गया क्योंकि सामान्य आखों से देखने पर ये ग्रह आसमान में किसी तारे की भाँती ही दिखाई देते हैं और आसमान के बैकग्राउंड में तारों की तुलना में ये ग्रह चलते हुए दिखाई देते हैं, इसलिए इन्हें भटकते हुए तारे यानि प्लेनेट कहा गया है।

लेकिन आज हम जानते हैं कि ग्रह कोई तारे नहीं होते बल्कि हमारे सौरमंडल में घूमते हुए खगोलीय पिंड हैं, जो सूर्य के बनने के बाद बचे हुए मलबे से बने हैं।

लेकिन अगर हम ग्रहों को एक दायरे में रख कर परिभाषित करना चाहते हैं को हमें कुछ क़ानून बनाने होंगे, जो खगोलीय पिंड उनका पालन करेगा उसे ग्रह मान लिया जाएगा और जो उनका पालन नहीं करेगा उसको ग्रह की सूची से बहार कर दिया जाएगा।

ग्रहों की नयी परिभाषा

एक बड़ी बहस के बाद IAU के 19 मेम्बर मिलकर ग्रहों की एक परिभाषा तैयार करते हैं जोकि निम्नलिखित है-

  1. ग्रह वो कोई भी खगोलीय पिंड हो सकता है जो सूर्य का चक्कर लगा रहा हो और उसका व्यास 2000 किलोमीटर से ज्यादा हो।
  2. ग्रह के लिए दूसरी शर्त है उस खगोलीय पिंड का आकार। खगोलीय पिंड का आकार उस पिंड के गुरुत्व की वजह से गोलाकार हो गया हो।
  3. किसी भी पिंड के ग्रह कहलाने के लिए उस पिंड का अपने आसपास के इलाके में गुरुत्व प्रभाव होना जरूरी है।

और इन तीनो परिभाषाओं की वजह से प्लूटो ग्रह की श्रेणी से बहार निकल जाता है। सिर्फ प्लूटो ही नहीं बल्कि CERES और ERIS भी मुख्य ग्रहों की श्रेणी से बहार कर दिए जाते हैं।

Back to top button