Late Heavy Bombardment क्या है? Unsolved Mystery
Late Heavy Bombardment: हमारे सौरमंडल के बनने के शुरूआती समय में, जब ग्रह बन चुके थे और उन ग्रहों के बनने के बचा हुआ मलवा हमारे पूरे सौरमंडल में घूम रहा था। वैज्ञानिक मानते हैं की उस समय करीब 4.1 से 3.8 अरब साल पहले हमारे सौरमंडल में एक बहुत ही भयानक घटना घटी।
वैज्ञानिकों की मान्यता के अनुसार हमारे सौरमंडल में शुरूआती समय में कुल 9 ग्रह हुआ करते थे, जिसमें की हमारे अंदरूनी सौरमंडल में कुल पांच ग्रह जिनमें बुध ग्रह, शुक्र ग्रह, पृथ्वी, मंगल ग्रह और थीया ग्रह हुआ करते थे। बात करें अगर बाहरी सौरमंडल की, तो इसमें कुल 4 बड़े दैत्त्याकार ग्रह हुआ करते थे जोकि ब्रहस्पति ग्रह, शनि ग्रह, यूरेनस ग्रह और Neptune ग्रह शामिल हैं।
उस समय हमारे सौरमंडल में ग्रहों के बनने के बाद जो मलवा बच गया था और पूरे सौरमंडल में घूम रहा था वो हमारे सौरमंडल के अंदरूनी ग्रहों से टकरा गया और बहुत ही भयंकर तबाही हमें सभी ग्रहों पर देखने को मिली।
चाँद पर गये अन्तरिक्ष यात्रियों द्वारा, चाँद से लाई गई Moon Rocks का अध्ययन करने पर इस बात की पुष्टि हुई है की ये घटना हुई थी और इसे हम The Late Heavy Bombardment के नाम से जानते हैं। चाँद पर पड़े हुए गड्ढे और तमाम निशाँ भी इस बात की गवाही देते हैं।
वहीं कुछ वैज्ञानिक इस तर्क को नहीं मानते और इस पूरे Concept को सिरे से खारिज कर देते हैं। तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम The Late Heavy Bombardment के बारे में जानेंगे।
Late Heavy Bombardment क्या है?
शुरूआती दौर में जब सोलर नैब्युला से हमारे सौरमंडल के बनने की शुरुआत हुई, तब सबसे पहले हमारा सूर्य बना और उसके बाद सभी ग्रहों के बनने की प्रक्रिया शुरू हुई।
हमारा सूर्य उस समय बहुत ही ज्यादा एक्टिव था और उस से बहुत ही ज्यादा मात्रा में रेडिएशन और सौर हवाएं निकल रही थीं। जिससे हमारे सूर्य के निकट जो भी भारी तत्व बन रहे थे वो इन सौर हवाओं की वजह से अन्तरिक्ष में बिखर गये।
ग्रहों को बनने में बहुत ज्यादा समय लगा और इन ग्रहों का निर्माण कुछ इस प्रकार हुआ कि चट्टानी ग्रह हमारे सूर्य के निकट बने और सभी गैसिय ग्रह पीछे की तरफ बने थे। लेकिन ग्रहों के बनने की इस प्रक्रिया में बहुत सा मलबा बच गया था जोकि पूरे सौरमंडल में घूम रहा था।
उस समय पूरे सौरमंडल में भारी उथल पुथल मची हुई थी। कोई मलवा कहीं टकरा रहा था, तो कोई अपनी जगह बदल रहा था। इसी बीच ग्रहों के बनने के दौरान बचा मलवा अंदरूनी सौरमंडल की तरफ खिंचा आने लगा और सभी चट्टानी ग्रहों से टकराने लगा।
हमारे सौरमंडल में पाई जाने वाली एस्टेरोइड बेल्ट भी उन्हीं बचे हुए मलवे से बनी हुई है। लेकिन उस समय एस्टेरोइड बेल्ट का निर्माण नहीं हुआ था और पूरा का पूरा मलवा हमारे अंदरूनी सौरमंडल का रुख कर रहा था।
सारा मलवा सौरमंडल के अंदरूनी चट्टानी ग्रहों से टकराने लगा, भारी उथल पुथल मच गई। चंद्रमाओं और ग्रहों पर एस्टेरोइड और चट्टान के बड़े बड़े टुकड़े गिर रहे थे। माना जाता है की शुरुआत में हमारी पृथ्वी पर पानी नहीं हुआ करता था लेकिन इस घटना के दौरान कोई ऐसा एस्टेरोइड हमारे पृथ्वी से टकरा गया था जिसमें पानी भरा हुआ था।
चाँद पर बुध ग्रह की सतह देखने में बिलकुल एक ही जैसी लगती है पर सच बात तो ये है कि दोनों ही खगोलिय पिंडों पर चट्टानों के टकराने की वजह से बहुत ज्यादा क्रेटर बने हुए हैं। इसी रहस्यमई घटना को The Late Heavy Bombardment के नाम से जाना जाता है।
लेकिन कुछ वैज्ञानिकों को आज भी इस बात पर यकीं नहीं है कि पहले कभी ऐसा हुआ भी था। इसका समर्थन करने वाले वैज्ञानिक इसके पक्ष में अपनी अलग राय देते हैं जबकि इसके विपक्ष में रहने वाले लोग अपनी लाग राय और प्रमाण या सबूत देते हैं।
Late Heavy Bombardment के सबूत
अपोलो मिशन के दौरान अन्तरिक्ष यात्रिओं नें चाँद से बहुत से चट्टानी टुकड़ों को इकठ्ठा किया था और उनको जब वापिस पृथ्वी पर लाकर उनका अध्ययन किया गया तो वैज्ञानिक इस बात से हैरान थे कि चाँद पर पाई गयी ये चट्टानें असल में किसी बहुत बड़े टकराव के दौरान बहुत ज्यादा गर्मी की वजह से पिघल गई थी।
उस चट्टानों को और अधिक Study करने पर पता चला कि ये उसी समय अंतराल के दौरान ही पिघली हैं जब हमारे सौरमंडल में The Late Heavy Bombardment हुई थी।
इसके अलावा चाँद के और बाकी के इम्पैक्ट क्रेटर को समझा गया तो वहन पर भी जो Conclusion निकल कर सामने आया वो यही कह रहा था कि समय में पीछे बहुत दूर एक भयंकर टकराव हुआ था। यहाँ पर बात सिर्फ हमारे चाँद की नहीं है बल्कि यही same Condition बाकि के ग्रहों की भी है। इन सब से भी हमें ये पता चलता है कि The Late Heavy Bombardment बहुत बड़े पैमाने पर हुई थी।
बुध ग्रह और चाँद के अभी के यानि बिलकुल नये इम्पैक्ट क्रेटर को जब स्टडी किया गया तब ये पता चला की दोनों जगहों पर impactor के प्रभाव एक ही जैसे हैं और दोनों क्रेटर के बनने का समय भी लगभग आसपास का ही है। तो ये कुछ ऐसे सबूत हैं जो वैज्ञानिकों को ये मानने पर मजबूर करते हैं कि The Late Heavy Bombardment जैसी कोई घटना हुई थी।
पृथ्वी पर देखा जाए तो इस घटना के निशान हमारी पृथ्वी पर बहुत कम देखने को मिलते है क्योंकि हमारी पृथ्वी पर Plate Tectonics की मूवमेंट की वजह से और सतह के लगातार बदलते रहने की वजह से यहाँ से इस घटना के निशाँ पूरी तरह से मिट गये हैं।
एस्टेरोइड बेल्ट में भी इस घटना के सबूत पूरी तरह से देखे जा सकते हैं। एस्टेरोइड बेल्ट में कुछ ख़ास जगहों पर Iron Element की मात्र बहुत ज्यादा देखने को मिलती है और वैज्ञानिक मानते हैं की ऐसा The Late Heavy Bombardment की वजह से ही है।
Late Heavy Bombardment क्यों हुई थी?
एस्टेरोइड बेल्ट के नजदीक बहुत से एस्टेरोइड और कॉमेट इकठ्ठा हो गये थे और उनकी पापुलेशन लगातार बढती जा रही थी। बड़े बड़े ग्रहों के गुरुत्व प्रभाव की वजह से वहन पर मौजूद चट्टानी टुकड़े अपना रास्ता भटक जाते और हमारे अंदरूनी सौरमंडल का रुख कर लेते।
हमारे अंदरूनी सौरमंडल में चट्टानी ग्रह होने की वजह से अंदरूनी सौरमंडल का घनत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और बाहरी सौरमंडल के ग्रहों की अपेक्षा चट्टानी ग्रह एक दुसरे के बहुत ज्यादा पास पास मौजूद हैं। इस वजह से ग्रहों का बचा हुआ मलवा हमारे अंदरूनी सौरमंडल की ओर बढ़ने लगा था।
जुपिटर यानि की ब्रहस्पति ग्रह एक बहुत बड़ा ग्रह है जो हमें किसी भी बड़े एस्टेरोइड से बचाता है लेकिन उस समय ये ग्रह ही इस घटना के लिए जिम्मेदार था। इसी के गुरुत्व के वजह से ही मलवा तेज़ी से हमारे ग्रहों की तरफ बढ़ा था और ये भयंकर धटना हुई।
इसके अलावा ये भी माना जाता है कि चट्टानी ग्रहों की सतह ठोस है, इसलिए एस्टेरोइड के टक्कर के निशान ग्रहों की सतह पर रह जाते हैं। वहीं गैसीय ग्रहों पर अगर ऐसी कोई टक्कर होती है, तो वो चट्टान का टुकड़ा उन ग्रहों में ही समा जाएगा जिसकी वजह से उस ग्रह पर टक्कर के कोई निशान नहीं रहते।
ये कहा जाता है कि उस समय Late Heavy Bombardment की घटना सभी ग्रहों पर सामान रूप से हुई थी लेकिन हमारे अंदरूनी सौरमंडल पर इसके निशान ज्यादा देखने को मिलते हैं।
Grand Track Model के मुताबिक हमारे सौरमंडल के दो सबसे बड़े ग्रह ब्रहस्पति और शनि की मूवमेंट की वजह से LHB की घटना हुई थी। इस मॉडल के मुताबिक ये दोनों ग्रह अपने ऑर्बिट में बदलाव करते हैं और अंदरूनी सौरमंडल में प्रवेश करते हैं। इस दौरान वो बहुत से आसपास के चट्टानी मलवों को अपनी ग्रेविटी से इधर उधर फेंकते आते हैं, और मलवा पूरे सौरमंडल में फ़ैल जाता है। इसके बाद ये दोनों ग्रह अपनी फाइनल जगह पर अपने ऑर्बिट में स्थिर हो जाते है जहाँ पर आज हम इनको देखते हैं।
जो एस्टेरोइड इन दोनों ग्रहों की चाल की वजह से बिखरे थे वो हमारे अंदरूनी सौरमंडल में आकर तबाही मचा देते हैं और सभी ग्रहों जैसे कि बुध ग्रह, शुक्र ग्रह, पृथ्वी, और मंगल ग्रह पर आकर टकरा जाते हैं और इसी घटना को हम Late Heavy Bombardment (LHB) के नाम से जानते हैं।
इसके अलावा Nice Model भी इस घटना को काफी बेहतर तरीके से समझा सकता है जो कहता है कि बर्फीले ग्रह Uranus और Neptune की मूवमेंट की वजह से एस्टेरोइड हमारे अंदरूनी सौरमंडल में आ गये और इसके साथ कुछ Kuiper Belt के बर्फीले कॉमेट भी हमारे सौरमंडल के इलाके में खींचे चले आये। प्लूटो ग्रह के बनने के बाद बचे मलवे को भी इन बड़े ग्रहों नें अंदरूनी सौरमंडल का रास्ता दिखा दिया।
तो Nice Model एकदम बाहरी ग्रहों को इस Late Heavy Bombardment का जिम्मेदार मानता है।
पृथ्वी पर पानी कैसे आया?
भले ही पृथ्वी पर अनेकों रहस्य है और “यहाँ पर जीवन कैसे आया” ये भी वैज्ञानिकों के लिए बहुत बड़ा सवाल बना हुआ है। लेकिन हमारी “पृथ्वी पर पानी कैसे आया” ये सवाल भी कोई कम रहस्यमई नहीं है क्योंकि वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी का जन्म यहाँ पर बिना पानी के हुआ था।
पृथ्वी एक तरह का नरक थी जहाँ पर पानी के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। जैसे आज के समय बुध या शुक्र ग्रह हैं, पर आज हम पृथ्वी पर जो पानी देखते हैं वो आखिर कहीं से तो आया है। तो वैज्ञानिक मानते हैं कि पृथ्वी पर ये पानी और कहीं से नहीं, बल्कि उसी Late Heavy Bombardment की घटना की वजह से आया है।
माना जाता है कि पृथ्वी से जो एस्टेरोइड या कॉमेट टकराए होंगे वो पानी से भरपूर होंगे और उन्हीं ने पृथ्वी पर पानी को पहुंचाने का काम किया था।
पहले ये माना जाता था कि पृथ्वी पर पानी पहुंचाने का काम किसी कॉमेट का है जोकि Kuiper Belt से आया होगा। Uranus और Neptune जैसे बड़े बर्फीले ग्रहों को माना जाता था कि वो इन Kuiper Belt Objects के ऑर्बिट को भटका कर हमारे अंदरूनी सौरमंडल में भेज देते हैं।
Kuiper Belt Objects बर्फ और पानी से बनी होती हैं और वैज्ञानिक मानते हैं कि इन्हीं बर्फीली चट्टानों के पृथ्वी से टकराने की वजह से हमारी पृथ्वी को पानी का भण्डार मिला होगा। लेकिन आगे की रिसर्च नें वैज्ञानिकों की इस सोच पर लगाम लगा दी।
जब comets पर वैज्ञानिकों नें और भी रिसर्च की और Kuiper Belt Comets जैसे कि Comet 67P और Halley’s Comet को स्टडी किया, तो पता चला की Kuiper Belt Objects में पानी तो होता है लेकिन वो पानी भारी होता है नाकि सामान्य पानी। भारी पानी को Heavy Water कहा जाता है और ये सामान्य पानी से थोडा अलग होता है।
Normal Water : सामान्य पानी की बात करें तो ये 2 Hydrogen और 1 Oxygen Atoms से मिल कर बना होता है।
Heavy Water : भारी पानी भी 2 Hydrogen और 1 Helium Atom से मिल कर बना होता है लेकिन यहाँ पर Hydrogen Atom में एक Neutron अधिक होता है जिसे हम Deuterium कहते हैं। Deuterium Atom Hydrogen का ही Isotope है लेकिन ये Hydrogen Atom से भारी होता है।
वैज्ञानिकों का मन्ना है कि अगर पृथ्वी पर पानी Kuiper Belt Objects यानि कि बर्फीले Comets से आया होता तो पृथ्वी पर पाए जाने वाले पानी में Deuterium की मात्रा Hydrogen की अपेक्षा ज्यादा होती। जबकि ऐसा नहीं है।
अब वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर पानी बाहरी कॉमेट की वजह से नहीं बल्कि सौरमंडल के भीतरी एस्टेरोइड की वजह से आया होगा, और यही वजह है कि वैज्ञानिक The Late Heavy Bombardment को पृथ्वी पर पानी लाने के लिए जिम्मेदार मानते हैं।
Late Heavy Bombardment क्या है?
अरबों साल पहले सौरमंडल के ग्रहों के बनने के बाद बचा मलवा, हमारे अंदरूनी सौरमंडल में दाखिल हो जाता है और सभी चट्टानी ग्रहों से टकरा जाता है जिसे हम Late Heavy Bombardment (LHB) के नाम से जानते हैं।
Late Heavy Bombardment की घटना कब हुई?
Late Heavy Bombardment की घटना आज से करीब 4.1 से 3.8 अरब साल पहले हुई थी। जब हमारे सौरमंडल में सूर्य और ग्रह अभी बने ही थे और चारों तरफ चट्टानी मलवा बिखरा पड़ा था।
Late Heavy Bombardment के सबूत क्या हैं?
बुध ग्रह की सतह और हमारे चाँद की सतह पर पड़े निशाँ इस Late Heavy Bombardment के ही सबूत हैं। इसके अलावा चाँद से लाये गये Moon Rocks के सैंपल भी इसकी पुष्टि करते हैं।
Famous Late Heavy Bombardment Models?
Grand Track Model and Nice Model are two of the most famous models.