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ग्रहों के रंग अलग अलग क्यों होते हैं? Why Planets Have Different Colors

धरती पर हम जिस दुनियां को देखते हैं वो बहुत ही रंगीन होती है और जिस तरह से हम रंगों को देख कर खुश होते हैं उस से पता चलता है कि रंग हमारे जीवन और इस दुनियां के लिए कितने जरूरी हैं।

हरे-भरे घास के मैदानों को देख कर हम खुश हो जाते हैं, रंग बिरंगे फूलों से हमारा बहुत लगाव होता है, समुन्द्र के गहरे नीले पानी को देख कर एडवेंचर की फीलिंग आती है। जिससे पता चलता है कि रंग हमारे सोचने के नज़रिए को भी प्रभावित करते हैं।

लेकिन रात के आसमान में हमें बहुत से तारे दिखाई देते हैं जो लगभग सभी एक सामान ही चमक रहे होते हैं, लेकिन आपको ये जान कर हैरानी होगी कि तारे भी अलग-अलग रंगों के होते हैं। आसमान से देखने पर हमारी पृथ्वी नीले और हरे रंग की दिखाई पड़ती है।

हम ये जानते हैं कि हम यहाँ धरती पर रह कर धरती को नीले और हरे रंग के अलावा भी कई रंगों से सजी हुई देखते हैं। पर अन्तरिक्ष से हमें सभी रंग दिखाई नहीं देते। धरती पर 71% पानी है जिसका रंग नीला हमें आसमान से दिखाई देता है और बाकी के हमारे इंसानी इलाकों में काफी ज्यादा रंग पाए जाते हैं लेकिन दूर स्न्त्रिक्ष से देखने पर हमारी पृथ्वी पर मौजूद वनस्पति इन सभी रंगों को फीका कर देती है।

परिणाम स्वरुप हमें पृथ्वी पर दूसरा सबसे ज्यादा दिखाई देने वाला रंग हरा हो जाता है। इसके अलावा अगर आप हमारे सौरमंडल पर एक नज़र डालेंगे तो आपको दिखेगा कि यहाँ पर हर एक ग्रह का अपना अलग रंग है जो उस ग्रह कि पहचान बन चुका है।

जैसे हम अपने ग्रह पृथ्वी को नीला ग्रह कहते हैं, मंगल को उसके रंग के आधार पर लाल ग्रह कहा जाता है और इसके अलावा यूरेनस ग्रह को आसमानी रंग की वजह से जाना जाता है।

आखिर हमारे सौरमंडल में सभी ग्रह अलग अलग रंगों के क्यों है? ये सवाल जरुर आपके मन में आ सकता है, तो चलिए आज हम इसी सवाल का उत्तर खोजने की कोशिश करते हैं।

लेकिन सबसे पहले हमें ये जानना होगा की आखिर रंग क्या होते हैं?

रंग क्या होते हैं?

जब प्रकाश के कण यानि कि फोटोन किसी वास्तु से टकरा कर हमारी आँखों तक पहुँचते हैं तो हमें उस वस्तु के रंग का ज्ञान होता है जिस वास्तु से प्रकाश टकरा कर हम तक आया है। अब इस पूरी प्रक्रिया में हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर होता क्या है?

सबसे पहले एक वस्तु है जो आपके सामने मौजूद एक टेबल पर पड़ी है। वस्तु मान लीजिये कि एक गेंद है जोकि हरे रंग की आपको दिखाई दे रही है।

अब होता ये है कि जैसे ही प्रकाश के कण यानि कि फोटोंस इस गेंद से टकराते हैं ती ये गेंद उस प्राकश में मौजूद सभी wavelengths को Absorb कर लेती है और सिर्फ हरे रंग की Wavelength को absorb नहीं करती है। हरे रंग की वेवलेंथ गेंद से टकरा कर हमारी आखों तक आ जाती है।

जब हमारी आखों के अंदर मौजूद कलर डिटेक्टर्स उस वेवलेंथ को देखते हैं तो हमारे दिमाग को हरे रंग होने का सिग्नल दिया जाता है और हमारे दिमाग समझ जाता है कि सामने पड़ी हुई गेंद हरे रंग की है।

असल में रंग हमारी दुनियां में मौजूद तो होते हैं लेकिन ये कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे हम छू कर और पकड़ कर देख सकें। रंग असल में हमारे दिमाग और हमारी आखों के बीच में होने वाला संवाद है। हम जो भी रंग को देखते हैं असल में वो रंग उससे जुडी हुई वास्तु का नहीं होता है बल्कि उस वास्तु से रिफ्लेक्ट की गई वेवलेंथ का होता है जिसे उस वास्तु ने रिजेक्ट कर दिया होता है।

उदहारण के लिए आप सेब को ही ले लीजिये। हमारे मन में धारणा है कि सेब लाल होते हैं, लेकिन अगर विज्ञानं की नज़र से देखा जाए तो सेब लाल नहीं है बल्कि जिस लाइट वेवलेंथ को सेब से सोखा नहीं, जो लाइट वेवलेंथ उस सेब से टकरा कर आपकी आखों तक पहुँच गई है, असल में उस वेवलेंथ का रंग लाल होता है।

खैर चलिए अब हम ग्रहों पर एक नज़र डालते हैं और देखते हैं कि अलग अलग ग्रहों का रंग क्या है और सभी ग्रह अलग अलग रंगों के क्यों दिखाई देते हैं?

ग्रहों के रंग कैसे निर्धारित होते हैं

हम ये जानते हैं कि ग्रह सिर्फ एक चट्टान या फिर गैस का गोला भर नहीं होता है बल्कि इससे कहीं ज्यादा होता है। एक ग्रह अपने Geographical Features के लिए जाना जाता है तो दूसरा कोई ग्रह अपने वातावरण में पाई जाने वाली किसी गैस के लिए जाना जाता है, जो मिल कर उस ग्रह के रंग को निर्धारित करते हैं। कई बार उस ग्रह पर सबसे ज्यादा मात्र में पाए जाने वाले एलिमेंट ग्रह के रंग को निर्धारित करते हैं।

आइये देखते हैं कि ग्रह के रंग को निर्धारित करने वाले कौन कौन से फैक्टर हैं –

Planet Composition

हम शुरू करते हैं अपने सौरमंडल के सबसे पहले ग्रह बुध से। बुध ग्रह पर बहुत ज्यादा मात्रा में Carbon Rich मटेरियल पाया जाता है जिसका नाम है Graphite जोकि पूरे बुध ग्रह की सतह पर मौजूद है।

बुध ग्रह पर कोई वातावरण नहीं है जिससे प्रकाश सीधा इसकी सतह तक पहुँचता है और इसकी सतह द्वारा सोख लिया जाता है और हमें बुध ग्रह Slate Gray रंग का दिखाई देता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जो वेवलेंथ बुध ग्रह पर मौजूद Material से रिफ्लेक्ट हुई है वो Slate Gray रंग की है।

हमारे पडोसी मंगल ग्रह की अगर Composition की बात करें तो मंगल की सतह रेतीली मिटटी से ढकी हुई है और मंगल की सतह पर बहुत ज्यादा मात्र में Iron Oxide पाया जाता है जिससे हमें मंगल ग्रह लाल रंग का दिखाई देता है।

इस तरह से आप कह सकते हैं कि किसी भी ग्रह की Composition यानी उस ग्रह पर अधिकतम मात्रा में पाई जाने वाली चीज उस ग्रह के रंग को निर्धारित करती है।

लेकिन कहानी सिर्फ यहाँ पर ख़त्म नहीं होती है।

Planet’s Atmosphere

ग्रह जोकि किसी भी तरह के वातावरण से लैस हैं उन ग्रहों का रंग वातावरण से निर्धारित होता है जैसे कि हम अपने पृथ्वी की बहन यानि कि शुक्र ग्रह का उदहारण लेकर देख सकते हैं।

शुक्र ग्रह का वातावरण बहुत ही घना है जिसकी वजह से सूर्य का प्रकाश शुक्र ग्रह की सतह तक भी नहीं पहुँच पाता। शुक्र ग्रह के वातावरण में बहुत ज्यादा मात्रा में Carbon Dioxide और बहुत सी जहरीली गैसें जैसे कि carbon monoxide और Sulfuric Acid जैसे तत्व पाए जाते हैं।

ये गैसें शुक्र ग्रह के वातावरण से ही ज्यादातर प्रकाश को रिफ्लेक्ट कर देती है जिससे हमें शुक्र ग्रह का रंग हल्के संतरी और पीले रंग का मिला जुला रूप देखने को मिलता है।

सौरमंडल के अगर हम एक और ग्रह यूरेनस की बात करें तो इस ग्रह के वातावरण में बहुत ज्यादा मात्रा में मीथेन गैस पाई जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यूरेनस लाल रंग की लाइट को सोख लेता है जबकि ये हलके नील रंग की लाइट को रिफ्लेक्ट कर देता है, जिस वजह से हमें यूरेनस ग्रह का रंग नील या फिर हलका नीला दिखाई देता है।

जब हम बात करते हैं वातावरण की वजह से ग्रह के रंग के निर्धारित होने की, तो मंगल ग्रह को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। हमें पता है कि हमने मंगल ग्रह को पहले Planet Composition की श्रेणी में रखा था लेकिन यहाँ पर दोनों ही क्रियाएं एकसाथ घटित हो रही हैं।

आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि मंगल का अपना एक वातावरण है हालांकि वो वातावरण बहुत ही पतला है लेकिन उस वातावरण में ऑक्सीजन गैस के अणु मौजूद हैं जो मंगल पर मौजूद iron यानी लोहे को जंग लगा देते हैं और इस तरह से हमें मंगल ग्रह की सतह पर Iron Oxide देखने को मिलता है।

मंगल ग्रह की सतह प्रकाश को रिफ्लेक्ट तो करती है जिससे हमें मंगल ग्रह की लाल छवि दिखाई देती है लेकिन मंगल पर मौजूद लोहे को जंग उसके वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन की वजह से लगती है जिसकी वजह से मंगल असल में लाल रंग के प्रकाश को रिफ्लेक्ट करता है।

शनि ग्रह को भी अपना रंग उसके वातावरण में मौजूद गैसों की वजह से ही मिलता है जिसमें मुख्य तौर पर हाइड्रोजन, हीलियम, अमोनिया और पानी के अलावा कई तरह के हाइड्रोकार्बन देखने को मिल जाते हैं। इन्हीं की वजह से शनि ग्रह को पीले-भूरे रंग की आभा मिलती है।

इस तरह से हम देख सकते हैं कि वातावरण किसी भी ग्रह के रंग को कैसे हमारे सामने पेश करता है।

Planet’s Activities

ग्रहों पर बहुत ही एक्टिविटीज चलती रहती हैं जैसे की हमारी पृथ्वी पर कहीं पर बरसात होती है तो कहीं पर भयंकर सूखा पड़ता है, लेकिन पृथ्वी पर ये क्रियाएं बहुत बड़ी या व्यापक नहीं होती हैं।

पृथ्वी के अलावा बहुत से ग्रह हैं जहाँ पर बहुत व्यापक तौर पर हमें ग्रह के अन्दर चलने वाली एक्टिविटी देखने को मिल जायेंगी, जैसे की मंगल पर आपने सुना होगा कि बहुत बड़े रेत के तूफ़ान आते हैं की मंगल को पूरी तरह से अपने आगोश में ले लेते हैं। जिसकी वजह से मंगल ग्रह पूरी तरह से हमें अलग दिखाई देता है।

यहाँ पर हम अपने सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह ब्रहस्पति की बात करते हैं जहाँ पर वैज्ञानिकों का मनना है कि यहाँ पर हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े तूफ़ान आते हैं। The Great Red Giant के बारे में तो आपने सुना ही होगा जोकि ब्रहस्पति पर आने वाला सब्स्व पुराना तूफ़ान है जो अभी तक चल रहा है जो देखने में लाल रंग का दिखाई देता है जिसकी वजह से इसका नाम भी पड़ा है।

लेकिन हम जानते हैं कि ब्रहस्पति ग्रह का रंग पूरी तरह से लाल नहीं है और जो रंग हम ब्रहस्पति ग्रह का अभी देखते हैं वो ना तो पूरी तरह से उसमें मौजूद Composition का है। असल में ब्रहस्पति ग्रह पर मौसम बहुत ही अनिश्चित है, वहां पर बहुत ही भयंकर तूफ़ान आते रहते हैं और हवाएं एक तरफ से दूसरी तरफ चलती रहती हैं।

एक तथ्य ये भी है की अगर ब्रहस्पति ग्रह पूरी तरह शांत हो जाएगा तो वो बिलकुल ही अलग रंग का दिखाई देगा।

हवाओं के बहने से ब्रहस्पति ग्रह पर हमें बैंड दिखाई देते हैं और अलग-अलग जगह पर अलग-अलग दबाव होने से गहरे और हलके रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। पूरे ग्रह की अगर बात करें तो ब्रहस्पति ग्रह पर हमें वहां चल रहे तूफानों की वजह से मिलाजुला रंग देखने को मिलता है।

तापमान भी ब्रहस्पति पर चल रहे तूफानों की वजह से हर जगह पर अलग ही रहता है इसलिए इस ग्रह का रंग हमें तापमान के हिसाब से लाल रंग से लेकर पिला और फिर सफ़ेद भी देखने को मिल जाता है। ब्रहस्पति ग्रह के रंग को इस पर चलने वाले तूफ़ान और तेज़ हवाएं कंट्रोल करती हैं इसलिए हमें ब्रहस्पति के इतने रंग दिखाई पड़ते हैं लेकिन सब रंग एक दुसरे से बहुत घुलमिल जाते हैं, उनमें कोई Clear Boundary दिखाई नहीं देती।

Planets Clouds

नेपच्यून ग्रह को हम सब उस ग्रह के रंग की वजह से जानते हैं, जोकि गहरे नील रंग का है। हमारे सौरमंडल के आखिरी छोर पर मौजूद हमारा सबसे आखिरी ग्रह नील रंग का है। पर हम देखते हैं कि कई बार हमें नेपच्यून और यूरेनस को पहचानने में गलती हो जाती है क्योंकि ये दोनों ही ग्रह बहुत ज्यादा मिलते जुलते हैं अपने रंग को लेकर।

नासा ओए अनुसार हमारे सौरमंडल के आखिरी छोर पर होने की वजह से दोनों ही ग्रह सिर्फ दिखने में ही एक जैसे नहीं हैं बल्कि ये दोनों ही ग्रह बिलकुल एक ही जेसे मटेरियल से बने भी हुए हैं।

ये एक आश्चर्य की बात है कि अगर दोनों ग्रह एक ही जैसे मटेरियल से बने हुए है तो ये हमें रंग में बिलकुल एक ही जैसे दिखाई क्यों नहीं देते क्योंकि दोनों ही ग्रहों का अकार भी लगभग एक ही जैसा है।

अगर हम दोनों ग्रहों को एक साथ देखें तो हमें फर्क साफ़ दिखाई देता है कि यूरेनस ग्रह हलके नील रंग का है तो वहीँ नेपच्यून ग्रह गहरे नील रंग का है। आखिर ये फर्क कैसे आता है?

नासा के अनुसार नेपच्यून ग्रह पर हमें बादल दिखाई नहीं देते जिसकी वजह से हमें मीथेन द्वारा रिफ्लेक्ट की हुई लाइट दिखाई देती है, वहीँ पर अगर यूरेनस ग्रह को देखा जाए तो यूरेनस ग्रह पर बादलों की एक बहुत मोटी परत है जो यूरेनस के रंग को हल्का नीला बना देती है।

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निष्कर्ष

हमने जाना कि कैसे हमारे ग्रह अलग-अलग वजहों से हमने अलग रंग के दिखाई देते हैं। ग्रह पर मौजूदा परिस्थितियां कैसे किसी भी ग्रह की आभा को बदल देती हैं। हर ग्रह पर एक अलग वातावरण है जो उसे बिलकुल अलग रंग देता है।

बाकी हम सब ये जानते हैं कि रंग किसी भी वस्तु का fundamental characteristic नहीं है बल्कि लाइट, एंगल और हमारे देखने के नज़रिए का खेल है।

आशा है कि आपको जानकारी अच्छी लगी होगी। यहाँ पर हम ऐसे ही अन्तरिक्ष विज्ञान से जुड़े सवालों पर चर्चा करते रहते हैं, इसलिए आप इस वेबसाइट पर अपना आना-जाना बनाए रखें और इस तरह के और भी आर्टिकल इस वेबसाइट पर आपको मिल जायेंगे, फुर्सत से उन्हें भी जरुर पढियेगा।

ग्रहों का रंग अलग-अलग क्यों होता है?

ग्रहों पर मिलने वाले पदार्थों, ग्रहों के वातावरण, ग्रह पर चलने वाली प्रक्रियाओं और ग्रह पर बनने वाले बादलों की वजह से ग्रहों का रंग हमें अलग-अलग दिखाई देता है।

नेपच्यून और यूरेनस एक जैसे हैं लेकिन उनका रंग अलग क्यों है?

नेपच्यून और यूरेनस एक ही जैसे पदार्थों से बने हैं लेकिन यूरेनस ग्रह पर हमें बहुत मोटे बादल देखने को मिलते हैं जिसकी वजह से उसका रंग हल्का नीला हो जाता है। नेपच्यून पर बादल नहीं बनते हैं इसलिए उसका रंग गहरा नीला होता है।

मंगल ग्रह का रंग लाल क्यों है?

मंगल ग्रह की सतह पर लोहा पाया जाता है और वातावरण में ऑक्सीजन। लोहे को ऑक्सीजन की वजह से जंग लग जाती है जिससे Iron Oxide बनता है और इसी वजह से हमें मंगल ग्रह लाल दिखाई देता है।

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