Jupiter Planet: Amazing Facts and Information | ब्रहस्पति ग्रह – एक दैत्याकार रक्षक ग्रह
Jupiter planet: ब्रहस्पति ग्रह हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है और साथ ही हमारी पृथ्वी के लिए बहुत महत्वपुर्ण भी है। ये हमारे सौरमंडल में पांचवें स्थान पर है, लेकिन इसका ये स्थान एक ऐसा विशेष स्थान है जहाँ से हमारे सौरमंडल में बहुत सी चीजें बदलना शुरू हो जाती हैं।
जुपिटर हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इस ग्रह का डायमीटर पृथ्वी से 11 गुना ज्यादा है। और इसका volume पृथ्वी से 1300 गुना ज्यादा है। जुपिटर के अंदर पृथ्वी जितने 1300 ग्रह समा सकते हैं।
ब्रहस्पति ग्रह हमारे सौरमंडल का पहला गैस जायंट है यानि की ये ग्रह गैसीय ग्रह है। जुपिटर से पहले हमारा अंदरूनी सौरमंडल ख़त्म हो जाता है और सभी चट्टानी ग्रह भी ख़त्म हो जाते हैं।
जुपिटर के साथ हमारे सौरमंडल का बाहरी हिस्सा शुरू होता है और इस हिस्से में सब गैसीय ग्रह ही मौजूद हैं। इसके साथ ही जुपिटर हमारे सौरमंडल का पहला दैत्य ग्रह भी है, इसके बाद हमारे सौरमंडल के अंत तक सभी ग्रह गैसीय दैत्याकार ही है जिनका मतलब होता है गैस जायंट।
ब्रहस्पति ग्रह हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है और इसकी विशालता का अंदाजा हम इसी बात से लगा सकते हैं कि इसका भार सौरमंडल के बाकी ग्रहों के कुल भार के ढाई गुना से भी ज्यादा है।
ब्रहस्पति ग्रह पूरी तरह से हाइड्रोजन गैस का बना हुआ है और इसमें कुछ मात्र में अन्य गैसें भी हैं। इसके साथ ही ये भी माना जाता है की इस ग्रह के अंदर हीरों की बारिश होती है लेकिन इस बात की पुष्टि अभी नही हो पाई है। हम इंसानों नें ब्रहस्पति ग्रह पर गैलेलियो प्रोब इसकी अंदरूनी संरचना को समझने के लिए भेजा था लेकिन वो इस ग्रह के ज्यादा अंदर तक नहीं जा पाया।
ब्रहस्पति ग्रह का एक रिंग सिस्टम भी है लेकिन वो इतना पतला है कि उसे हम आसानी से देख नहीं पाते, लेकिन वैज्ञानिकों को पहले लगता था कि ब्रहस्पति ग्रह का कोई भी रिंग सिस्टम नहीं है। लेकिन सच्चाई तो ये है कि बहरी सौरमंडल में पाए जाने वाले हर एक गैस जायंट ग्रह के पास अपना एक रिंग सिस्टम है।
जुपिटर ग्रह से बहुत से रहस्य भी जुड़े हुए हैं जैसे की इस ग्रह पर आने वाला “The great red spot” नाम का तूफ़ान हमारे लिए रहस्य बना हुआ है। इसकी उत्पत्ति कैसे हुई और इसका अंत कैसे होगा? ये ग्रह कैसे काम करता है और ये कब तक हमारे सौरमंडल में आगे बना रहेगा? ऐसे ही कई सवाल हैं जो किसी रहस्य से कम नहीं है।
इस ग्रह का साइज, वातावरण कुछ ऐसा है जो वैज्ञानिकों को सोच में डाल देते हैं। इस ग्रह को सदियों से एस्टॉनोमर्स द्वारा स्टडी किया जा रहा है, मॉडर्न साइंस आने के बाद इस ग्रह के बारे में वैज्ञानिकों ने कई सारी रोचक जानकारी प्राप्त की है और इसके कई सारे रहस्यों से पर्दा उठाया है।
आज के इस आर्टिकल में हम हमारे सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह यानि कि जुपिटर की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने वाले हैं। जहां पर हम जानेंगे कि जुपिटर का वातावरण कैसा है यह ग्रह किस तरह से गति करता है और इसको स्टडी करने के लिए अंतरिक्ष विज्ञान में क्या-क्या प्रयास किए गए हैं।
Basic Information about Jupiter Planet
प्राचीन ग्रीक और रोमन सभ्यताओं को जुपिटर के अस्तित्व का पता था। इन्ही सभ्यताओं ने इस ग्रह का नामकरण किया। 1976 में International Astronomical Union ने इस ग्रह के रोमन नाम Jupiter को मंजूरी दी।
जुपिटर को हमारे सौरमंडल का सबसे पुराना ग्रह माना जाता है। सूर्य के बनने के करीब एक मिलियन साल बाद इस ग्रह का निर्माण शुरू हुआ था। जुपिटर एक गैस जॉइंट प्लेनेट है, मतलब कि इस पर कोई भी सह नहीं है यह पूरा गैसों से मिलकर बना हुआ है। इसका डायमीटर कुल 142,984 km का है जो की धरती से 13 गुना ज्यादा है।
जुपिटर का मास धरती से 318 गुना ज्यादा है। अगर सौरमंडल के बाकी ग्रहों के मास को एक साथ मिला दिया जाए तो भी जुपिटर का मास इन से 2.5 गुना ज्यादा होगा।
पूरा गैसों से मिलकर बना हुआ है इसके वातावरण में 10% हाइड्रोजन है और बाकी 24 परसेंट हीलियम।
जुपिटर के चारों ओर ammonia crystals के बहुत ही घने बादल मौजूद हैं जो इस पूरे ग्रह को कवर करके रखते हैं। जुपिटर के वायुमंडल की जी लेयर में यह बादल स्थित हैं उसे लेयर को tropopause कहते हैं। यहां पर हवा की गति 360 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा होती है।
पूरे जुपिटर पर कहीं ना कहीं कोई ना कोई तूफान चलता रहता है। नासा के जूनो मिशन ने यह बताया था कि जुपिटर के दोनों पोल पर भी कई सारे तूफान चल रहे हैं।
Great Red Spot Jupiter Planet
जब भी आपने जुपिटर की कोई इमेज अच्छी होगी तो आपने यह रेड स्पॉट जरूर देखा होगा। इमेज में है यह हमें जुपिटर पर किसी धब्बे की तरह दिखाई पड़ता है। असल में यह जुपिटर पर मौजूद एक बहुत बड़ा तूफान है जो की कई किलोमीटर में फैला हुआ है। इसकी डिस्कवरी में की गई थी और ऐसा माना जाता है कि इसकी डिस्कवरी बाद से लेकर आज तक इसका साइज थोड़ा कम होता गया है। यह तूफान इतना बड़ा है कि इसमें पूरी पृथ्वी समा सकती है। पृथ्वी से भी बड़ा होने के बावजूद भी यह तूफान बृहस्पति ग्रह को अनस्टेबल नहीं करता।
और यह जुपिटर का एक भाग बनकर रह गया है।
Moons of Jupiter
जुपिटर का साइज और मास बहुत ज्यादा बड़ा है जिसकी वजह से इसका गुरुत्वाकर्षण प्रभाव पूरे सौरमंडल में सभी ग्रहों से ज्यादा है। गुरुत्वाकर्षण प्रभाव ज्यादा होने के कारण कई सारे खगोलीय पिंड इस ग्रह का चक्कर लगाते हैं। अब तक कोई खोजों से यह पता चला है कि जुपिटर के पास 95 उपग्रह है जो इसकी कक्षा में चक्कर लगाते हैं। Europa और Ganymede इसके सबसे बड़े उपग्रह हैं। इन उपग्रहों को Galileans moons of Jupiter कहा जाता है।
Interesting facts about Jupiter
आईए अब हम जुपिटर के बारे में कुछ रोचक तथ्य जानते हैं।
साइज में इतना बड़ा होने के बावजूद भी जुपिटर अपनी दूरी पर बहुत ही तेजी से घूमता है। इसकी एक घूर्णन का समय 10 घंटे का होता है यानी की यहां पर एक दिन 10 घंटे के बराबर होता है।
जुपिटर मैग्नेटिक फील्ड पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड से से 14 गुना ज्यादा ताकतवर है।
जुपिटर का नेचुरल सैटेलाइट गैनीमोड सौरमंडल का सबसे बड़ा मून है ।
जुपिटर को एक Failed star माना जाता है। अगर यह ग्रह अपने अंदर उतना मास इकट्ठा कर लेता जितने में न्यूक्लियर फ्यूजन शुरू हो जाए तो यह एक तारा बन सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और यह एक ग्रह के रूप में विकसित हुआ।
घर पर जो अमोनिया के बादल हैं वे काले पीले और सफेद रंग के दिखाई पड़ते हैं। जुपिटर पूरा इसी तरह के बादलों से भरा हुआ है।
जुपिटर का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव इतना ज्यादा है कि यह सौरमंडल के कई सारे एस्टेरॉयड पर प्रभाव डालता है। जिस वजह से पृथ्वी पर एस्टेरॉइड के टकराने का खतरा कुछ हद तक काम हो जाता है। इस तरह से जुपिटर पृथ्वी और सौरमंडल के बाकी ग्रहों के लिए एक रक्षक का काम करता है।
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Space missions related to Jupiter
जुपिटर को कई सालों से टेलिस्कोप और गणितीय समीकरणों द्वारा स्टडी किया जाता रहा है। स्पेस टेक्नोलॉजी के आने के बाद इस ग्रह को समझने के लिए कई सारे प्रयास किए गए जिनमें से ज्यादातर सफल रहे।
Pioneer 10 नासा द्वारा लांच किया गया पहले स्पेसक्राफ्ट था जो की जुपिटर की स्टडी के लिए भेजा गया था और जो अपने मिशन में सफल रहा था। इसको 1972 में लॉन्च किया गया था। इसके अगले साल ही यानी कि 1973 में Pioneer 11 लॉन्च किया गया।
1979 वाइजर वन और वाइजर 2 भी जुपिटर ग्रह तक पहुंचे और इन दोनों स्पेसक्राफ्ट ने जुपिटर की कई समय तक स्टडी की। इन स्पेसक्राफ्ट्स ने खासकर इसके चंद्रमाओं को स्टडी करने पर ध्यान दिया।
5 अगस्त 2011 को नासा ने जुपिटर की स्टडी के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्पेस मिशन लॉन्च किया जिसका नाम था ‘जूनो’ यह मिशन अभी तक जुपिटर की स्टडी कर रहा है और इसको 2025 तक एक्सटेंड किया गया है।
इसने जुपिटर के बारे में कई सारी ऐसी इनफॉरमेशन भेजी है जिससे जुपिटर के कई रहस्य से पर्दा उठा है। जुपिटर के पोल्स को स्टडी करते हुए जूनो नें यहां पर कुछ stable cyclones डिस्कवर किए। 2020 में जुनो ने जुपिटर पर एक meteor impact भी डिस्कवर किया।
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